राष्ट्रीय (12/01/2015) 
स्वामी विवेकानंद ने भारतीय संस्कृति को विश्व स्तर पर पहचान दिलाई- केके सिरोही
-जाट कालेज में मनाई गई स्वामी विवेकानंद की 153वीं जयंती
कैथल, स्वामी विवेकानंद ने एक ऐसे समाज की कल्पना की थी, जिसमें धर्म व जाति के आधार पर मनुष्य मनुष्य में कोई भेद न हो। उन्होंने सन 1893 में अमेरिका के सिकागों में आयोजित विश्व सर्व धर्म परिषद में भारतीय दर्शन को विश्व के सामने रखा। उन्होंने कहा कि स्वामी विवेकानंद ने सही अर्थों में भारत वर्ष के नाम को पहचान दिलवाई। उन्होंने अपने कर्म योग और सत्व ज्ञान योग से देश के इतिहास के पन्नों में अपने इतिहास को दर्ज करवाया।समाज में बेटियों का महत्व बेटों से भी ज्यादा है। एक शिक्षित लड़की दो परिवारों का भला करती है। एक जिसमें वह पैदा होती है और दूसरे वह ससुराल पक्ष में जाकर एक नई पीढ़ी को नया रास्ता दिखाती है। उन्होंने छात्राओं से महापुरूषों के जीवन से प्रेरणा लेकर दृढ़ निश्चय और कठोर परिश्रम से अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए भी उन्हें प्रेरित किया। स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि उठो, जागो और लक्ष्य को प्राप्त करो। उन्होंने छात्राओं से प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी द्वारा शुरू किए गए स्वच्छता अभियान के आधार पर आसपास साफ-सफाई रखने तथा पड़ौसियों को भी इसके लिए प्रेरित करने को कहा। 

उन्होंने स्पष्ट किया कि यदि स्वामी विवेकानंद द्वारा दिखाए गए मार्ग का अनुसरण किया जाए तो जीवन में आने वाली सभी कठिनाईयों पर विजय पाई जा सकती है।भारतीय संस्कृति को विश्व स्तर पर पहचान दिलवाई। यह विचार जाट शिक्षण संस्थान के प्रबंध निदेशक मेजर केके सिरोही ने संस्थान स्थित जाट कालेज परिसर में आयोजित स्वामी विवेकानंद जयंती अवसर पर व्यक्त किए। इस मौके पर स्वामी विवेकानंद के तैल चित्र पर उन्होंने पूष्पांजलि अर्पित की। पूष्प अर्पित करने वालों में जाट कालेज के प्राचार्य मांगे राम, जाट वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय के प्रिंसीपल फूल सिंह मान, जाट पोलीटैक्रिक के प्राचार्य सतीश कुमार सिंगला तथा जाट शिक्षण संस्थान में नवनियुक्त पीआरओ महेंद्र खन्ना शामिल रहे।  अपने संबोधन में केके सिरोही ने कहा कि स्वामी जी के मुख्य कथन उठो, जागो और तब तक नही रूको, जब तक मंजिल प्राप्त न हो जाए, को आज के संदर्भ में भी आत्मसात करने की जरूरत है। विशेषकर युवा पीढ़ी के लिए स्वामी विवेकानंद एक प्रेरक व्यक्तित्व के रूप में अपनी पहचान रखते थे। उन्होंने कहा कि स्वामी जी ने अपना जीवन स्वामी रामकृष्ण परमहंश को समर्पित किया तथा गुरूदेव के शरीर के त्याग के दिनों में अपने घर और कुटुम्ब की नाजुक हालत व स्वयं के भोजन की चिंता किए बिना वे गुरू की सेवा में सतत संलग्न रहे। बाल्य काल में अपने पारिवारिक नाम नरेंद्र नाथ दत्त की बुद्धि बचपन से ही तीव्र थी और परमात्मा को पाने
की लालसा भी प्रबल थी। वे वेदांत और योग को पश्चिम संस्कृति में प्रचलित करने के लिए महत्वपूर्ण योगदान देना चाहते थे। उन्होंने कार्यक्रम में मौजूद युवा पीढ़ी का आह्वान किया कि स्वामी विवेकानंद को एक आईकोन के रूप में सामने रखकर जीवन में अपने लक्ष्य की ओर
पूरी मजबूती से आगे बढ़े। उन्होंने कहा कि विवेकानंद एक ऐसे व्यक्तित्व के रूप में जाने गए जिनका सबल बौधिक आधार शायद ही ढुंढा जा सके। अध्यात्मवाद बनाम भौतिकवाद के विवाद में पड़े बिना भी यह कहा जा सकता है कि क्षमता के सिद्धांत का आधार जो स्वामी
विवेकानंद ने दिया वो अनुकरणीय है। जाट कालेज के प्राचार्य श्री मांगे राम ने स्वामी जी के जीवन से जुड़े अनेक संस्मरणों व शिक्षापरद  घटनाओं का विशेष रूप से जिक्र किया। उन्होंने कहा कि आज के युवकों के लिए इस औजस्वी सन्याशी का जीवन एक आदर्श है। इस अवसर पर जाट कालेज के स्टाफ के साथ-साथ विद्यार्थी भी मौजूद रहे।
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