राष्ट्रीय (11/12/2014) 
हरियाणा वित्त मंत्री कैप्टन अभिमन्यू ने दिए कई सुझाव

हरियाणा के वित्त मंत्री कैप्टन अभिमन्यू ने आज सुझाव दिया कि संग्रहित अंतर्राज्यीय माल एवं सेवा कर (आईजीएसटी) का दो प्रतिशत पहले उन राज्यों को दिया जाना चाहिए जो माल एवं सेवाएं प्रदान कर रहे हैं ताकि सुदृढ़ विनिर्माण आधार तथा उच्च केन्द्रीय बिक्री कर राजस्व वाले राज्यों के हितों की रक्षा की जा सके।  इसके अतिरिक्त, उन्होंने खाद्यान्नों को माल एवं सेवा कर के दायरे से बाहर रखने या इसके कारण राज्यों को होने वाले राजस्व घाटे की स्थायी आधार पर प्रतिपूर्ति करने पर भी बल दिया।

                वित्त मंत्री आज नई दिल्ली में देश में जीएसटी लागू करने के लिए १२२वें संविधान संशोधन बिल, २०१४ के नवीनतम संशोधित ड्राफ्ट पर चर्चा करने के लिए राज्य वित्त मंत्रियों की अधिकारप्राप्त कमेटी के अध्यक्ष श्री ए आर राथर की अध्यक्षता में बुलाई गई बैठक में बोल रहे थे।

उन्होंने कहा कि हरियाणा सरकार एक स्वतंत्र तंत्र के माध्यम से कम से कम पांच वर्ष की अवधि के लिए जीएसटी के पूर्ण मुआवज़े की भरपाई करने की अधिकारप्राप्त कमेटी की सिफारिश से सहमत है। उन्होंने कहा कि सरकार का १२२वें संविधान संशोधन बिल, २०१४ में एक उचित प्रावधान करने का भी आग्रह है ताकि सुदृढ़ विनिर्माण आधार वाले राज्य, जिन्हें जीएसटी के तहत माल एवं सेवाओं के अंतर्राज्यीय आवागमन के कारण भारी वित्तीय नुकसान होने की संभावना है, के हितों की रक्षा की जा सके। उन्होंने कहा कि ऐसे राज्यों के हितों की सुरक्षा के लिए सुझाव है कि एकत्रित किये जाने वाले आईजीएसटी का दो प्रतिशत पहले उन राज्यों के खाते में जमा करवाया जाये जहां से माल एवं सेवाएं प्रदान की जायेंगी।  उन्होंने कहा कि विकल्प के तौर पर जीएसटी मुआवजा कोष सृजित किया जाना चाहिए और आईजीएसटी में से कुछ प्रतिशत राशि इस कोष में जमा करवायी जानी चाहिए जिसका प्रबंधन प्रस्तावित जीएसटी परिषद द्वारा किया जा सकता है।

                उन्होंने कहा कि हरियाणा को अनुच्छेद २७० में प्रस्तावित संशोधन स्वीकार्य नहीं हैं क्योंकि अंतर्राज्यीय लेन देन से एकत्रित होने वाला केन्द्रीय जीएसटी घटक हस्तांतरित नहीं किया जा सकेगा, जिसके कारण राज्यों को भारी राजस्व घाटा होगा। उन्होंने कहा कि सरकार का सुझाव है कि अंतर्राज्यीय लेनदेन पर एकत्रित जीएसटी के केन्द्रीय घटक को विभाज्यपूल की परिधि में लाने के लिए इस प्रावधान में उचित संशोधन किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि हरियाणा को खाद्यान्नों पर खरीद कर या वैट से लगभग एक हजार करोड़ रुपये का राजस्व प्राप्त होता है। बहरहाल, जीएसटी के तहत यह प्रस्तावित है कि खाद्यान्नों को टैक्स से छूट दी  जायेगी। अत: हमारा सुझाव है कि खाद्यान्नों को या तो जीएसटी की परिधि से बाहर रखा जाये या इस कर के कारण राज्य को होने वाले राजस्व घाटे की स्थायी आधार पर भरपाई की जाये।

                उन्होंने कहा कि हरियाणा प्रदेश संविधान की सातवीं अनुसूचि में सूची-॥-राज्य सूची में प्रस्तावित प्रविष्टि ५४ के मद्देनजर जीएसटी में पेट्रोलियम उत्पादों को शामिल करने के पक्ष में है। उन्होंने कहा कि प्रस्तावित प्रविष्टि के मद्देनजर राज्यों को पेट्रोलियम उत्पादों से अपने कर संग्रहण को बनाये रखने के लिए जीएसटी के अलावा अतिरिक्त कर लगाने का अधिकार होगा। इसके अतिरिक्त, वित्त की संसदीय स्थायी कमेटी ने भी जीएसटी के तहत पेट्रोलियम उत्पादों को सम्मिलित करने की सिफाशि की है।

                उन्होंने कहा कि एक ओर तो केन्द्र सरकार केन्द्रीय सूची की प्रविष्टि ८४ में संशोधन करके तम्बाकू एवं उसके उत्पादों पर आबकारी कर लगाने के अपने अधिकारों को बनाये हुए है वहीं दूसरी ओर राज्य इन वस्तुओं पर जीएसटी से अधिक कर नहीं लगा सकेंगे। तम्बाकू एवं इसके उत्पादों को राज्य सूची की प्रस्तावित प्रविष्टि ५४ में शामिल करके इस विसंगत पूर्ण स्थिति को सुधारे जाने की आवश्यकता है।

यहां यह उल्लेखनीय होगा कि सीएसटी मुआवजे का मुद्दा राज्यों के लिए चिंता का एक मुख्य विषय रहा है तथा राज्य वित्त मंत्रियों की अधिकारप्राप्त कमेटी में पहले सर्वसम्मति से निर्णय लिया था कि जीएसटी के मुद्दे पर विचार करने के लिए एक अनुकूल वातावरण सृजित करने हेतु सीएसटी मुआवजे के मुद्दे का निपटान किया जाना आवश्यक है। उन्होंने कहा कि हरियाणा सहित कई राज्यों ने ३ जुलाई, २०१४ को हुई अधिकारप्राप्त कमेटी की बैठक में भी इस मुद्दे को उठाया था तथा केन्द्रीय वित्त मंत्री ने राज्यों को मुआवजे की अदायगी का भरोसा दिलाया था। उन्होंने कहा कि उन्हें खेद है कि वर्ष २०१४-१५ के केन्द्रीय बजट में राज्यों को सीएसटी मुआवजे की अदायगी करने के लिए कोई प्रावधान नहीं किया गया है।

वित्त मंत्री ने कमेटी को मिलकर सीएसटी मुआवजे का मुद्दा उठाने और केन्द्र सरकार से चालू वित्त वर्ष के दौरान वर्ष २०१२-१३ तक की अवधि के लिए राज्यों को सीएसटी मुआवजे की समस्त लम्बित राशि जारी करने का आग्रह किया। उन्होंने कहा कि वर्ष २०१४-१५ से  जीएसटी के वास्तविक रूप से शुरू होने तक या तो राज्यों की पूरी भरपाई की जानी चाहिए या फिर सीएसटी की दर बढ़ाकर चार प्रतिशत की जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि ऐसा किए जाने से राज्यों तथा केन्द्र सरकार के बीच आपसी विश्वास एवं समझ का माहौल सृजित होगा।

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