विशेष (22/04/2024) 
यही पशु–प्रवृत्ति है कि आप आप ही चरे¸ वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे।।
भारतीय नारी के चिन्हित गुणों में एक अच्छी पत्नी होना, अच्छी मां होना, बेटी होना और बहु होना माना गया है। उपरोक्त मैथिली शरण गुप्त की कविता मनुष्यता के हिसाब से नारी की परिभाषा में समाज के लिए कुछ करना भी अनिवार्य है। कितनी ही नारियों को समाज के लिए कुछ करने की चाह और मौका दोनो मिलता है। 

सन्  २००६ में वंदना श्रीवास्तव को जब गृह कार्यों से राहत मिली, तब उन्हे समाज के लिए कुछ करने की चाहत हुई। ग्वालियर से १९९९ में एमबीए करने के बाद किसी भारतीय नारी की तरह बच्चो की सेवा सुश्रुषा में सात साल बीत चुके थे। नौकरी की कमी ना थी किंतु उन्होंने पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले के एक छोटे से गांव कर्ण सुबरना को अपनी कर्म भूमि बनाया। नशे की लत छुड़ाने के लिए एक संस्था के स्थापन से इस यात्रा की शुरुआत हुई। आज अट्ठारह साल बाद यह संस्था ट्रांसजेंडर को स्वावलंबी बनाना, गरीबों में जरूरत की चीजों का वितरण, विदेश में फंसे भारतीय नागरिक की देश वापसी, Covid के दौरान मदद देना इत्यादि कार्यक्रम चला रही है। 

आने वाले एक दशक या सदी में वातावरण परिवर्तन हमारी पीढ़ियों के लिए एक विकट समस्या बन जाएगी। इसको रोकने के लिए, वंदना और उनके मित्रों ने अस्तित्व फाउंडेशन की २०१६ में स्थापना की। अंततः २०२२ में उन्होंने अपने V४U रेडियो के माध्यम से चार क्षेत्रों में सामाजिक कार्य करना शुरू किया। वह थे - महिलाओं का उत्थान, बुजुर्गों का सम्मान, अल्पसंखकों का सशक्तिकरण, और बच्चो का मानसिक विकास। 

पर यह लेख पेशे से वकील और दिल से समाज सेवी डा वंदना के बारे में नहीं है। यह लेख उन सभी भारतीय नारियों को प्रोत्साहन देने के लिए है जो जीवन को सार्थक बनाना चाहती हैं। ऐसी नारियां जिनको पैसों का अभाव तो नही लेकिन अपने आप में, अपने उसूलों पे और अपनी क्षमता पे पूरा विश्वास है। 

वंदना अपने संपर्क में आए दो लोगों का उदाहरण देती हैं। पहली उनकी मित्र जो आर्मी के उच्च पदस्थ अधिकारी की गृहिणी होने के साथ साथ एक अच्छी गायिका और शिल्पकार भी थी। लेकिन उनका अपना वजूद सिर्फ एक Mrs शर्मा , बन कर रह गया था। वंदना ने उन्हें अपने रेडियो से जोड़ा। एक बार ट्रेन से सफर करते वक्त वंदना के साथ एक जवान का परिवार सफर कर रहा था। बातों बातों में पता चला की उस जवान की पोस्टिंग भी पंजाब में थी। वंदना बताती हैं जब उन्होंने उस जवान की पत्नी से अपने मित्र के पति के बारे में पूछा तो उसे कुछ ज्ञात ना था। लेकिन जब उसने अपनी मित्र का नाम बताया तो जवान की पत्नी की आंखों में चमक आ गई। वह बोली, सीहां हां उनको मैं जानती हूं। वो रेडियो में काम करती हैं। बहुत अच्छी बातें करती हैं।'

दूसरा वाक्या तेलंगाना के राजेश का है। दुबई में किसी कारण वंश वो बड़ी परेशानी में आ गए। किसी तरह से कर्ण सुबरना सोसायटी उनको भारत वापस ले कर आई। आज राजेश एक लाइफ कोच का काम करते हैं और अपने लोगों को विदेश में जीवन यापन की पद्धति बताते हैं। 

वैसे तो वंदना को कई पुरुस्कार मिलें हैं। लेकिन वह कहती हैं कि किसी निकटवर्ती का जीवन बनते और संवारते देखना ही उनके जीवन का सबसे बड़ा पुरुस्कार है। मैथिली शरण गुप्त की यह पंक्तियां वंदना के मनोभाव को दर्शाती हैं - 

विचार लो कि मत्र्य हो न मृत्यु से डरो कभी¸
मरो परन्तु यों मरो कि याद जो करे सभी।
अखण्ड आत्मभाव जो असीम विश्व में भरे¸
वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिये मरे।।
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