विशेष (07/04/2024) 
दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति से मांग — कॉलेजों में एससी/एसटी, ओबीसी, पीडब्ल्यूडी, ईडब्ल्यूएस श्रेणी के छात्रों के लिए मॉनेटरिंग कमेटी, ग्रीवेंस सेल बनाया जाए।
          फोरम ऑफ एकेडेमिक्स फ़ॉर सोशल जस्टिस के चेयरमैन व डीयू की पूर्व एडमिशन कमेटी के सदस्य  डॉ. हंसराज सुमन ने दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर योगेश सिंह को पत्र लिखकर मांग की है कि दिल्ली विश्वविद्यालय के कॉलेजों में यूजी, पीजी, पाठ्यक्रमों में एडमिशन प्रक्रिया शुरू करने से पूर्व डीयू से संबद्ध संस्थानों/कॉलेजों में प्रवेश प्रक्रिया के दौरान उत्पन्न होने वाली शिकायतों के समाधान के लिए कॉलेजों में अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग, आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग, विकलांग श्रेणी व अल्पसंख्यक उम्मीदवारों की सुविधा को ध्यान में रखते हुए एससी/एसटी सेल, मॉनेटरिंग कमेटी व ग्रीवेंस सेल की स्थापना कराने के लिए विश्वविद्यालय प्रशासन की ओर से कॉलेजों को सर्कुलर जारी करें ताकि इन वर्गों के छात्रों को शैक्षिक सत्र—2024--25 में प्रवेश संबंधी दिक्कतों का सामना न करना पड़े। डॉ.सुमन ने बताया है कि स्वयं दिल्ली विश्वविद्यालय प्रशासन का मानना है कि कॉलेजों में भी शिकायत निवारण समिति, एससी/एसटी सेल, ओबीसी सेल बने लेकिन इस संदर्भ में कॉलेजों को कोई सर्कुलर जारी नहीं किया जाता।  

                          फोरम के चेयरमैन डॉ. हंसराज सुमन ने बताया है कि दिल्ली विश्वविद्यालय के अंतर्गत तकरीबन 79 कॉलेज हैं। जिनमें स्नातक तथा स्नातकोत्तर की पढ़ाई होती है। इन कॉलेजों में हर साल स्नातक स्तर पर विज्ञान, वाणिज्य व मानविकी विषयों में 70 हजार से अधिक विद्यार्थी प्रवेश लेते हैं। उन्होंने आगे बताया है कि कभी-कभी कॉलेज के प्रिंसिपल अपने स्तर पर अतिरिक्त छात्रों को प्रवेश दे देते हैं लेकिन उस बढ़ी हुई संख्या अनुपात में आरक्षित श्रेणी के छात्रों को प्रवेश नहीं दिया जाता है। जबकि भारत सरकार एवं विश्वविद्यालय अनुदान आयोग का सख्त निर्देश है कि भारत सरकार की आरक्षण नीति व डीओपीटी के अनुसार सामान्य वर्ग की सीटों के अनुपात में ही अनुसूचित जाति -15%, अनुसूचित जनजाति -7.5%, अन्य पिछड़ा वर्ग(ओबीसी) -27%, के अलावा पीडब्ल्यूडी, ईडब्ल्यूएस आदि को उनके आरक्षण के हिसाब से प्रवेश के लिए सीटें उपलब्ध कराई जाएँ। उन्होंने चिंता जताई है कि हर साल एससी/एसटी व ओबीसी श्रेणी के छात्रों की सीटें खाली रह जाती है। उन्होंने बताया है पिछले वर्ष भी आरक्षित श्रेणी के छात्रों की हजारों सीटें खाली रह गई थीं। जबकि आरक्षित वर्ग के छात्र कॉलेजों में प्रवेश के लिए अपनी बारी का इंतजार करते रह गए। इसकी सूची विश्वविद्यालय के पास उपलब्ध है।

                           डॉ. सुमन ने कुलपति को लिखे पत्र में बताया है कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की गाइडलाइंस --2006 में विश्वविद्यालयों को भेजें गए सर्कुलर के अनुसार यह सख्त निर्देश है कि प्रत्येक विश्वविद्यालय/कॉलेज/संस्थान में एससी, एसटी सेल, ओबीसी सेल, पीडब्ल्यूडी सेल, ग्रीवेंस सेल, मॉनेटरिंग कमेटी व जातीय आधार पर भेदभाव न हो इससे संबंधित कमेटी की स्थापना की जाये। उन्होंने बताया है कि फिलहाल इन सेल में जो आरक्षित वर्गों के शिक्षकों की नियुक्ति की जाती है वह सिर्फ़ दिखावा मात्र है। इन सेल के पास कार्यवाई करने संबंधी अधिकार न होने के कारण ये निष्क्रिय हैं। साथ ही इन सेल में कॉलेज के प्रिंसिपल ऐसे लोगों की नियुक्ति करते हैं जो प्रिसिंपल के निर्देशानुसार काम करते हैं, परिणामस्वरूप इन सेल के प्रति शिक्षकों एवं विद्यार्थियों की विश्वसनीयता खत्म हो जाती है। उन्होंने बताया है कि ग्रीवेंस सेल का निर्धारित कार्य आरक्षित वर्ग के शिक्षकों, कर्मचारियों, विद्यार्थियों के साथ होने वाले जातीय भेदभाव, नियुक्ति, पदोन्नति व प्रवेश आदि की समस्याओं का समाधान कराना है और समय-समय इसकी रिपोर्ट तैयार करके विश्वविद्यालय अनुदान आयोग तथा शिक्षा मंत्रालय को इसकी सूचना देना है। उनका कहना है कि यदि ग्रीवेंस सेल उचित ढंग से अपनी भूमिका का निर्वाह करे तो कॉलेजों में होने वाले छात्रों के प्रवेश, शिक्षकों की नियुक्तियाँ और पदोन्नति संबंधी कोई समस्या न हो, लेकिन ये सेल कॉलेज के प्रिसिंपल के हाथों की कठपुतली होते हैं। इन सेल को स्वतंत्र रखा जाना चाहिए । इस सेल में शिक्षक पदाधिकारियों और सदस्यों की नियुक्ति कॉलेज की स्टॉफ काउंसिल के माध्यम से होनी चाहिए। 

                        डॉ. सुमन ने कुलपति को लिखे पत्र में बताया है कि डीयू कॉलेजों के लिए शैक्षिक सत्र -2024-25 के लिए विश्वविद्यालय स्तर पर एक मॉनेटरिंग कमेटी व ग्रीवेंस कमेटी गठित करें जिसमें वर्तमान विद्वत परिषद के सदस्य व पूर्व सदस्यों के अलावा आरक्षित वर्ग के शिक्षकों को इस कमेटी में रखा जाए। कमेटी उन कॉलेजों का दौरा करेगी जहाँ नये छात्रों को प्रवेश दौरान किसी तरह की समस्या का सामना करना पड़ रहा हो। उन्होंने बताया है कि विश्वविद्यालय के विभागों / कॉलेजों में सबसे ज्यादा समस्या प्रवेश के समय एससी/एसटी व ओबीसी कोटे के जाति प्रमाण पत्रों को लेकर आती है जहाँ पर छात्रों के साथ भेदभाव तो किया ही जाता है उनके मूल जाति प्रमाण पत्र को भी निरस्त कर दिया जाता है। परिणामस्वरूप आरक्षित वर्ग के छात्र प्रवेश से वंचित रह जाते हैं और आरक्षित वर्ग की सीट भी खाली रह जाती है। 

                     कुलपति को लिखे पत्र में उन्होंने बताया है कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग और शिक्षा मंत्रालय समय-समय पर केंद्र सरकार की आरक्षण नीति, छात्रवृत्ति, एवं आरक्षित वर्ग के लिए नयी-नयी योजनाओं तथा प्रवेश संबंधी सर्कुलर जारी करता रहता है। जिससे कि इन सरकारी सुविधाओं का लाभ आरक्षित वर्ग के छात्रों को मिल सके। ये सूचनाएँ विश्वविद्यालय/कॉलेज/संस्थान को अपनी वेबसाइट पर अपलोड करना होता है, लेकिन कोई भी कॉलेज ऐसा नहीं करता है। छात्रों के प्रवेश संबंधी आंकड़े, एससी, एसटी व ओबीसी कोटे की प्रवेश के लिए बची हुई सीटें, कितना कोटा पूरा हुआ व कितनी सीटें खाली रह गईं, रिक्त पदों के बैकलॉग का ब्यौरा आदि को वेबसाइट पर डाला ही नहीं जाता है। जबकि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग हर साल सर्कुलर जारी करता है कि छात्रों के आरक्षण संबंधी जानकारी को वेबसाइट पर अपलोड किया जाए। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग और शिक्षा मंत्रालय के इन सर्कुलर द्वारा दिए गए निर्देशों को जारी करना कॉलेज प्रशासन के लिए अनिवार्य किया जाये जिससे कि प्रवेश की पंक्ति में खड़े छात्र इसका लाभ उठा सकें। 

 डॉ. हंसराज 'सुमन'
चेयरमैन - फोरम ऑफ एकेडेमिक्स फ़ॉर सोशल जस्टिस, 
पूर्व सदस्य, एडमिशन कमेटी 
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