खेल (25/03/2023) 
विश्व महिला मुक्केबाजी चैंपियनशिप मंे करोडो का खर्च आयोजकों, स्टेडियम की खाली सीटों से कोई लेना देना नहीं
मीडिया रूम में लाखों के  कैमरे और लेपटाॅप, बाहरी व्यक्ति आकर उठाते है, चाय पानी का मजा। 10 से 15 वाॅलियंटर्स रखे होने के बावजूद नहीं करते कोई पूछताछ।                    

नई दिल्ली, 23 मार्च। जंगल मैं मोर नाचा किसने देखा, यह कहावत राजधानी मंे चल रही विश्व महिला मुक्केबाजी चैंपियनशिप मंे बहुत ही स्टीक बैठती है। चैंपियनशिप 15 से 26 मार्च तक आयोजित की जा रही है।
 सूत्रों की मानें तो इस चैंपियनशिप में लगभग 8 से 10 करोड रूपया खर्च होने की संभावना बताई जा रही है। मगर सुविधाओं के नाम पर केवल और केवल औपचारिकताएं ही निभाई जा रही है। हालात यह है कि मीडिया रूम मंे जहां अफरातफरी का माहौल रहता है तो वहीं स्टेडियम के बाहर भी ऐसी ही स्थिति हैं। इंदिरागांधी स्पोर्टस काम्पलैक्स स्थित केडी जाधव कुश्ती स्टेडियम मंे विश्व महिला मुक्केबाजी का आयोजन किया जा रहा है। जिसको सोन्दर्यीकण करने के प्रयास मंे स्टेडियम के भीतर रंग-बिरंगी लाइटे लगाई हुई है। इन लाइटों को जलाने वाली तारें खुले में देखी जा सकती है। ऐसे में बारिश के चलते अगर कोई हादसा हो गया तो उसका जिम्मेदार कौन होगा!
यहीं नहीं मुक्केबाजों और स्टेडियम पर आने वाले दर्शकों को सुविधाएं देने के नाम पर वाॅलियंटर्स को रखा गया है। यह वाॅलियंटर्स दिल्ली विश्वविद्यालय के पत्रकारिता के छात्र बताए जा रहे है, जो पत्रकारिता सीखने की बजाए, मौज मस्ती करते अधिक दिखाई दे रहे हैं। यहीं नहीं अगर आप किसी न्यूज मंे आयोजकों या फिर वाॅलियंटर्स के खिलाफ लिखते हैं तो संबंधित अधिकारिगण आपसे उलफजूल बोलने लगते है। ऐसे में इनका भविष्य कैसो होगा और वो इस अवसर का लाभ कैसे उठा पायेंगे। 
सूत्रों के अनुसार चैंपियनशिप में खर्च लगभग 10 करोड का बताया जा रहा है। लेकिन इतना पैसा खर्च होने के बाद भी दर्शक स्टेडियम तक नहीं पहुंच पा रहे है। हालत यह है कि भारतीय मुक्केबाजों के दौरान जरूर वीआईपी बाॅक्स भरा-भरा दिखाई पड जाएगा, मगर बाकी समय बाॅक्स पूरे दिन खाली ही रहता है। इसी तरह दिल्ली से जुडे मुक्केबाजों, कोचों व एसोसिएशनों के अधिकारियों को भी चैंपियनशिप में बुलाया गया है। बताया यह भी जा रहा है कि इन सभी को भारतीय मुक्केबाजी संघ ने अपने-अपने विभागों से छुटटी लेने के लिए पत्र भी दिए है ताकि स्टेडियम पर भीड जैसा माहौल बना रहें। लेकिन इनमें से अधिकतर तो विभागों से छूटटी लेने के बाद वहां दिखाई ही नहीं देते, ऐसा बताया जा रहा है। 
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि करोडो रूपये लगने के बावजूद चैंपियनशिप मंे पदक जीतने वाले मुक्केबाज को ओलंपिक या विश्व स्तरीय प्रतियोगिता में खेलने का सीधे अवसर नहीं मिलेगा। ऐसे में करोडो रूपये खर्च कर भारतीय मुक्केबाजी संघ क्या दिखाना चाह रहा है। मगर इसका फायदा जरूर भारतीय मुक्केबाज पदक जीत कर सरकारी खजाने से पैसा इनाम के रूप में जरूर ले लेंगे। हमारा मानना है कि खिलाडियों को पैसा जीत पर जरूर मिलना चाहिए, लेकिन जब प्रतियोगिता का कोई महत्व ही नहीं है तो सरकारी पैसों को व्यर्थ में क्यों  खर्च किया जा रहा है। 
वैसे सच यह भी है कि विश्व महिला मुक्केबाजी के आयोजक दिल्ली जैसे शहर में चैंपियनशिप को लेकर माहौल ही खडा नहीं कर सके। स्टेडियम पर दर्शको का निशुल्क प्रवेश रखा गया है। ऐसे में राजधानी मंे 100 के करीबन क्लब व अकादमी बताई जा रही है। अगर यहां से ही मुक्केबाज चैंपियनशिप मंे पहुंच जाते तो तीन हजार की सीटों वाला स्टेडियम भर जाता। मगर आयोजकों को मुक्केबाजी से कोई लेना देना नहीं, बल्कि अंतराष्टृीय मंच पर अपने को कैसे स्थापित किया जा सके उसकी चिंता है।
नई दिल्ली से विजय कुमार की रिपोर्ट
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