विशेष (30/12/2022) 
'नाज़रीन अंसारी' का 'लफ्जों का संगम' काव्य जगत में बनाएगा एक सशक्त पहचान : विनोद क्वात्रा
कवि एवम लेखिका नाज़रीन अंसारी काव्य जगत की नवोदित लेखिका का दूसरा काव्य संग्रह 'लफ्जों का संगम' प्रकाशित हुआ  पुस्तक की समीक्षा करते हुए सुप्रसिद्ध   कवि तथा साहित्यकार विनोद क्वात्रा  ने लिखा कि यकीनन कवित्री ने अपने मन के भाव को बहुत ईमानदारी से सहज और सरल भाषा में कागज के कैनवास पर उतारा है। इनकी पहली किताब अपनी माता को श्रद्धांजलि स्वरूप समर्पित   'माँ' थी। जिस में माँ के प्रति सम्मान प्रगट कर बेटी के द्वारा माँ का और बेटी के सम्बन्धों का सम्मानीय और सटीक चित्रण था। पूरी किताब गद्द में लिखित थी, और अब यह दूसरी किताब काव्य संग्रह के रूप में, कवित्री के बहुमुखी लेखन की बहुमुखी प्रतिभा का परिचय देते हैं। 

किसी भी लेखक और साहित्यकार की पहचान उस का लेखन होता है। उभरती हुई लेखिका 'नाज़रीन अंसारी' जी का काव्य संग्रह 'लफजों का संगम' उनको काव्य जगत में विशिष्ट पहचान दिलवायेगा। 
संसार को बनाने वाले मालिक के सामने स्वच्छ और निर्मल फकीर बनकर याचना करती हुई कवयित्री अपनी कवित्त हृदय की कोमल पुकार से अपनी रचनाओं को  (ईश्वर) को समर्पित करती है। क्यों नहीं सुनेंगे निर्लेप हृदय की करुण पुकार को। किसी भी लेखक या लेखिका की रचनायें मन के उदगारों का शब्दो द्वारा कागज पर उलीचा हुआ विचारों का झरना होती हैं। उस में परिस्थितियों वश सुख दुख, आशा निराशा, प्रेम घृणा आदि सभी मन के भाव समाहित हो जाते हैं। कवयित्री एक रचना 'नीर' में पानी की पारदर्शिता और स्वच्छता को मनुष्य के व्यक्तित्व से तुलना कर महानता को दर्शाती है। 

"गंगा सा पवित्र मन हो,
पानी सा निर्मलता की तरह।
सादा सा जीवन हो, 
पानी की पारदर्शिता की तरह।" 

अतीत सदैव वर्तमान के साथ साथ परछाँई की तरह चलता है। माँ का बचपन का दुलार हो या बचपन के खेल खिलौने या मित्रों के बीच बिताए मीठे दुर्लभ क्षण हों सब सुधियों की धरोहर हैं। जीवन के आखरी क्षणों तक कभी न कभी रह रह कर याद आते रहते हैं, कविता बन कर। कवित्री 'नाजरीन' की जन्नत, बीते हुये क्षण, ईद का चाँद, आँचल, स्तंभ, सहेलियाँ, गुल्लक, ससुराल, मजार, भूल, फरिश्ते सा मन, सन्नाटा, आसमाँ, बहने, आँगन, मेरी दुनियाँ, सावन का झूला, आदि जैसी रचनायें जीवन की धरोहर हैं। 

'"कभी तो मन के सूने मजार पर आओ दोस्तो, 
यादों के फूल की चादर तुम भी चढ़ाओ दोस्तो।" 

संघर्षरत जीवन निराश क्षणों में विचलित भी होता है।
संघर्ष, खामोशी, कवित्री का अपने देश से प्रेम, संस्कारो और संस्कृति के प्रति लगाव उस की रचनाओं में दिखाई देता है। बहुत निर्मल प्रवाह में बहती सरिता की तरह रचनाओं में बहुत तरलता है। कवित्री कहीं कहीं शान्त सरिता की तरह भप्रवाह में बह गई, पर बड़ो का आदर, व्यक्तित्व, किरदार, चूड़ियाँ, खुद्दारी, स्वाभिमान जैसी रचनायें कवित्री के स्वाभिमान को दर्शाती हैं।
" हमारी चूड़ियों को हमारी बेड़ियाँ न समझना, ......" 

आशावादी नजरिये से कवित्री समाज और स्वयम को हमेशा 
देखती है। थोड़ा सा बचपना, आसमाँ की बुलंदी, क्रोध, प्रेम, भोर, बन्द दरवाज़े, दीया, मर्यादा, घूँघट, नंबर, घर, अंहकार, 
चाहत आदि रचनायें इस का उदाहरण हैं। 
चाहत कविता की दो पंक्तियाँ  ......
हर जंजीर से निकल खुली हवा में लहराऊँ।
तोड़कर कर हर पहरा मैं भी पर्वत लाँघ जाऊँ।...... 

और अंत में ईश्वर से प्रार्थना स्वरूप यही कहूँगा कि इस कविता संग्रह के माध्यम से कवित्री को प्रसिद्धि प्राप्त हो जिस से आगे और भी भावपूर्ण रचनाओं के सृजन की प्रेरणा मिलती रहे। इस काव्य संग्रह की सभी रचनायें श्रेष्ठ और विविध मन के भावों को पढ़ने को प्रेरित करती हैं। 
दिल्ली से ब्यूरो चीफ विजय गौड़ की विशेष रिपोर्ट
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