राष्ट्रीय (11/07/2015) 
जानिए क्या है 'वन रैंक वन पेंशन' मुद्दा

नई दिल्ली । कुछ वर्षों से भारतीय सेना में 'वन रैंक वन पेंशन' का मुद्दा जोरशोर से चल रहा है। हजारों की संख्या  में पूर्व सैनिकों ने इसे लेकर रैलियां की और ज्ञापन दिए। यहां तक कि कई पूर्व सैनिकों ने तो अपने मैडल्सव तक लौटा दिए। इन सभी की मांग है 'वन रैंक वन पेंशन'। तो आइए, समझते हैं कि आखिर यह 'वन रैंक वन पेंशनआखिर है क्या?

हमारे देश में नौकरी से रिटायर होने वाले लोगों को रिटायरमेंट के समय नियमानुसार पेंशन मिलती है। हालांकि इस पेंशन के मिलने का एक तय नियम होता है। यानी जो लोग 25 साल पहले रिटायर हुए हैं उन्हें मिलने वाली पेंशन की रकम और वर्तमान में उसी पद से रिटायर होने वालों को मिलने वाली रकम में भारी अंतर होगा। पहले रिटायर हो चुके लोगों को मिल रही पेंशन कम हो सकती है।

क्या है यह योजना

वन रैंक-वन पेंशन एक ऐसी योजना है जो सेना के एक रैंक और एक-समान सेवा की अवधि होने पर समान पेंशन का प्रावधान करती है। इसके योजना को लागू कराने के लिए भूतपूर्व सैनिक 1973 से ही कोशिश कर रहे हैं। लेकिन इस मुद्दे ने 8 फरवरी 2009 में तब जोर पकड़ा जब 300 से अधिक भूतपूर्व सैनिकों ने राष्ट्रपति भवन तक मार्च किया और अपने मैडल वापस कर दिए। 2008 में इस मुहिम को तेज करने के लिए इंडियन सर्विसमैन मूवमेंट की स्थापना की गई थी।

इसे एक उदाहरण से समझते हैं। मान लीजिए सेना के दो हवलदार अलग-अलग समय पर रिटायर हुए हैं। पहले सैनिक और दूसरे सैनिक के रिटायरमेंट के बीच कम से कम 5 साल का अंतर भी है। तो एक को अगर 1000 रुपए मासिक पेंशन मिल रही है, तो दूसरे को मुश्किल से 30 रुपए ही मिल रहे हैं। इसका मतलब है कि दोनों की पेंशन में बहुत ज्यादा अंतर है।

एक्से सर्विसमैन का कहना है कि सवाल पैसे का नहीं, मुद्दा ये है कि क्या वो इतनी पेंशन में गुजारा कर सकता है। इसलिए मांग हो रही है कि एक रैंक के लोगों को एक तरह की पेंशन दी जाए। इस योजना से 25 लाख से अधिक भूतपूर्व सैनिकों के साथ-साथ करीब 13 लाख से अधिक वर्तमान सैनिकों को फायदा मिलेगा। भारत में 6.5 लाख से अधिक शहीदों की विधवाओं और हर साल रिटायर होने वाले 65000 सैनिक भी इस योजना का लाभ उठा सकेंगे।

इस पेंशन योजना को लागू करने में कई तरह की समस्याएं हैं। सबसे बड़ी समस्या सरकार के खजाने पर पड़ने वाला आर्थिक बोझ। इस योजना को लागू करने के लिए शुरुआत में ही 8600 करोड़ रुपए की जरूरत होगी। इतना ही नहीं इस योजना के क्रियान्वयन के लिए बड़े प्रशासनिक ढांचे की जरूरत भी होगी। इसके लिए बड़ी संख्या में मानव और वित्तीय संसाधन की जरूरत होगी।

सरकार को भय है कि यदि यह योजना लागू कर दी गई तो अन्य सरकारी विभाग खासकर अर्धसैनिक बल भी इसी तरह की मांग करने लगेंगे। हो सकता है इसके लिए अदालत की मदद भी ली जाए। ऐसे में सरकार पर बहुत बड़ा आर्थिक बोझ आ जाएगा।

1971 तक रैंक के हिसाब से पेंशन भी अलग-अलग थी। अधिकारी को अपने वेतन का 50 फीसदी जबकि जवान को 75 फीसदी पेंशन मिलती थी। तीसरे वेतन आयोग ने इसे 50 फीसदी तय कर दिया।

1996 में रिटायर हुए सैनिकों को 2006 में रिटायर होने वाले सैनिकों से करीब 82 फीसदी कम पेंशन मिलती है जबकि मेजर रैंक में यह अनुपात 53 फीसदी का है। 2005 और 2006 में रिटायर हुए सैनिकों को मिलने वाली पेंशन में करीब 15000 रुपये का अंतर है। यह अंतर छठे वेतन आयोग की सिफारिशों की वजह से है।

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