राष्ट्रीय (30/06/2015) 
दिल्ली सरकार चौथे दिल्ली वित्त आयोग की सिफारिशों को कर रही अनदेखा- मोहन प्रसाद
मोहन प्रसाद भारद्वाज, अध्यक्ष, स्थायी समिति, उ.दि.न.नि. ने कहा है कि  दिल्ली सरकार अपने द्वारा प्रस्तुत वर्ष 2013-14-15 के बजट में एक ओर तो चैदहवें केन्द्रीय वित्तीय आयोग की सिफारिशों के नाम पर करों में अपनी हिस्सेदारी बढाकर 32 प्रतिशत से बढाकर 42 प्रतिशत करने की माँग कर रही है ।
दूसरी ओर नगर निगमों को विभिन्न अवसरों पर की गई लिखित घोषणाओं के आधार पर संयुक्त दिल्ली नगर निगम के लगभग 3300 करोड़ रूपयें देने के बारे में सारे सबूत सरकार के पास होने के बावजूद भी इस धनराशि के बारे में बात करना भी पसंद नही करती।
यह ज्योतिष्य अंक गणित का विषय हो सकता है की दिल्ली सरकार को वर्ष 2015 से 2020 की अवधि में केन्द्रीय सरकार से 25 हजार करोड़ रूपये मिलने चाहिए या नही । लेकिन दिल्ली नगर निगमों को देय राशि पुख्ता सबूतों पर आधारित है।
जिस आधार पर दिल्ली सरकार, केन्द्र सरकार से अपना हिस्सा 32 प्रतिशत से बढाकर 42 प्रतिशत का दावा कर रही है तो इसी अनुपात मंे नगर निगमों का हिस्सा भी, बढाकर क्या राज्य सरकार दिल्ली में लोकतंात्रिक जन स्वराज्य का उदाहरण प्रस्तुत नही करेगी ?
दिल्ली सरकार को वर्ष 2011-12 तक संयुक्त दिल्ली नगर निगम को 1095 करोड़ रूपये शिक्षा अनुदान, 412 करोड़ रूपयें गलोबल शेयर, 517 करोड़ मुनिसिपल रिर्फोम फंड और सम्पत्तिकर घाटे की मद 1300 करोड़ रूपयें देने चाहिए थे।
भारतीय संविधान का 74वाँ  संशोधन राज्य सरकार को दिल्ली वित्तीय आयोग की सिफारिशे मानने के लिए बाध्य करता है । तो फिर दिल्ली सरकार इसकी सिफारिश क्यों नही मान रही? जिस प्रकार दिल्ली सरकार का कन्सोलिडेट  फण्ड है उसी प्रकार नगर निगम का भी अपना फण्ड है।
दिल्ली तो कभी संविधान की अनुसूची-1 के अनुसार  पूर्ण राज्य नही रहा और राज्य का दर्जा प्राप्त करने से पहले दिल्ली के चीफ कमीशनर के द्वारा शासित क्षेत्र था। समय-समय पर इसका राज्य का दर्जा समाप्त होता रहा है। परन्तु नगर निगम जो के संसद द्वारा बनाया गया था। इसकी 1958 में स्थापना के समय से ही हमेशा दिल्ली की लोकल सेल्फ सरकार के रूप में रहा है।
भारद्वाज ने कहा कि शहरी ढ़ंाचागत सेवाओं में पूंजी निवेश के लिए आवश्यकताओं के विषय में भारत की शहरी स्थानीय स्वास्थय संस्थाओं की आय के साधन बढाने की क्षमता एवं आर्थिक स्वायता के मामले में विश्वभर में सबसे कमजोर है । हमारी  टेक्स वसूली की शक्तियंा व्यय के अनुरूप नही है।
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