राष्ट्रीय (06/06/2015) 
फसल बर्बाद होने के कारण किसानों ने मोड़ा पंचायती भूमि से अपना मन
बोली न लगाने से पूंडरी व राजौंद ब्लॉक में हो सकता है लगभग 8 करोड़ का नुक्सान
कैथल । पिछले साल विभिन्न गांवों में पंचायत की भूमि अच्छे दामों में चली गई थी। लेकिन खेती करने वाले किसानों को बारिश व ओलावष्टी से बर्बाद हुई फसलों से तबाह होने के बाद पंचायत की भूमि से अपना मन मोड़ लिया है। बताया जाता है कि भूमि के ठेके की कीमत ज्यादा है और आमदनी कम है। किसानों ने बताया कि पहले ही किसान गेहूं के सीजन में तबाह हो चूके है और अब सरकार ने भूमि के रेटों को भी आसमान पर पहुंचा दिया है जिससे किसानों ने भूमि की बोली लगाना ही बंद कर दिया है। प्रशासन के द्वारा हर गांव में पंचायत भूमि की बोली 1 नहीं 2 नहीं 3-3 बार कर चूकी है लेकिन कोई भी बोलीदाता नहीं होने के कारण हर बार प्रशासन खाली हाथ वापिस लोट आता है। अब आलम ये बना हुआ है कि प्रशासन अब किसानों द्वारा बोली लगाने की बांट देख रहा है। जानकारी देते हुए पूंडरी का कार्यभार संभाल रहे बी.डी.पी.ई.ओ. दीनानाथ शर्मा ने बताया कि पिलनी गांव में 24 एकड़, पाई में 48 एकड़, भाणा में 12 एकड़ अनुसुचित जाति के लिए,  करोड़ा में 21 एकड़, सेरधा में 21 एकड़, सौंगल में 42 एकड़, बरसाना में 28 एकड़, हजवाना में 31 एकड़, हाबड़ी में 29 एकड़, जटेडी में 29 एकड़, जखौली ए - 6 एकड़, कसान में 18 एकड़, खेडी संधल 29 एकड़, नंनद करण माजरा में 24 एकड़ आदि गांवों में इसी प्रकार से पंचायत की भूमि है। सभी जगहों पर प्रशासन के द्वारा कई बार बोली करवाई गई लेकिन कोई भी बोलीदाता न 
होने के कारण अबकी बार जमीने खाली रहने की डर बना हुई है। कारण बताने पर शर्मा ने बताया कि किसानों ने बोली न लगाने का मुख्य कारण ज्यादा कीमत होना बताया जा रहा है।
लगभग 8 करोड़ का नुक्सान हो सकता है पंचायतों को
पिछली बार 6 करोड़ 20 लाख 41 हजार 700 रुपए पूंडरी ब्लॉक को पंचायती भूमि से प्राप्त हुए थे, इसके साथ राजौंद ब्लॉक 1 करोड़ 73 लाख 7 हजार 350 रुपए की आय हुई थी। लकिन इस बार कोई भी बोलीदाता न मिलने के कारण दोनों ब्लॉकों में लगभग 8 करोड़ रुपए का नुक्सान पंचायती राज को हो सकता है। जिसका खामियाजा प्रशासन के साथ विभिन्न गांवों को भी भुगतना पड़ सकता है। अगर प्रशान अपने द्वारा तय कि गई भूमि की कीमत में कटौती कर दे तो शायद किसान भूमि लेने में अपनी रुची दिखा दे। अन्यथा इस बार पंचायती भूमि को खाली ही रहना पड़ेगा। जिससे प्रशासन व किसान दोनों को भारी नुक्सान उठाना पड़ेगा। 
पंचायतों की आर्थिक व्यवस्था पर पड़ सकता है असर
पंचायती भूमि की बोली न होने के कारण इसका सीधा असर पंचायतों की आर्थिक स्थिति पर पड़ेगा। क्योंकि इन जमीनों की बोली से आने वाले पैसे को गांव के विकास में लगाया जाता है। यदि प्रशासन के द्वारा भूमि के रेटों में कटौती नहीं की गई तो इस बार पंचायतों को खाली हाथ रहना पड़ सकता है। और इसके साथ-साथ सैंकड़ों की सख्यां में किसानों का रोजगार भी चला जाएगा फसल बर्बाद होने के कारण पहले ही किसानों की आर्थिक स्थिति कमजोर पड़ी है और इसके बाद तो वे बिना रोजगार के कहीं के नहीं रहेंगे। जिसका सीधा असर उनके परिवार पर पड़ेगा। पहले ही मानसून अपने समय में देरी पर चल रहा है और अबकी बार बारिश कम होने की संभवाना के चलते किसान पंचायत की भूमि पर अपना पैसा लगाने से डर रहे है।
मामले में रिर्पाट बनाकर उच्च अधिकारियों को अवगत करवा दिया गया-बी.डी.पी.ई.ओ.जब इस मामले के बारे में बी.डी.पी.ई.ओ. दीनानाथ शर्मा से पूछा गया तो उन्होंने बताया कि प्रशासन के द्वारा हर गांव में भूमि की 3-3 बार बोली करवा चूके है जिससे भाणा व जखौली गांव में कुछ जमीन किसानों द्वारा ले ली गई है और 3 बार बोली होने के बाद यदि अनुसुचित जाति के व्यक्ति बोली नहीं लगाते तो उस भूमि को समान्य श्रेणी में दे दी जाती है। उन्होंने बताया कि हमारे द्वारा इस मामले में रिर्पाट बनाकर उच्च अधिकारियों को अवगत करवा दिया गया है।
राजकुमार अग्रवाल
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