राष्ट्रीय (05/06/2015) 
तम्बाकू और तम्बाकू उत्पादों पर अतिरिक्त कर लगाने की शक्ति दे सरकार
हरियाणा सरकार ने केन्द्र सरकार से आग्रह किया है कि उसे माल और सेवा कर (जीएसटी) के अलावा तम्बाकू और तम्बाकू उत्पादों पर अतिरिक्त कर लगाने की शक्तियां दी जाए। 
हरियाणा के वित्त मंत्री कैप्टन अभिमन्यू, जो गुरुवार को नई दिल्ली में विभिन्न राज्यों के वित्त मंत्रियों की अधिकार प्राप्त समिति की बैठक में बोल रहे थे, ने कहा कि माल और सेवा कर क्षेत्र में केन्द्र व राज्यों की तम्बाकू और उसके उत्पादों की कर विषमता पर हरियाणा लगातार अपनी चिंता प्रकट करता रहा है। 
कैप्टन अभिमन्यू ने सुझाव दिया कि तम्बाकू और तम्बाकू उत्पादों को राज्य सूची की प्रस्तावित प्रविष्टि 54 में शामिल किया जाए जबकि केन्द्र सरकार केन्द्रीय सूची की संशोधित प्रविष्टि 84 के तहत तम्बाकू और तम्बाकू उत्पादों पर आबकारी शुल्क लगाने का अधिकार रख रहा है। परन्तु दूसरी तरफ राज्य इस तरह के हानिकारक सामान पर जीएसटी से अधिक कर लगाने में सक्षम नहीं होंगे। उन्होंने कहा कि इस विसंगति को दूर किए जाने की आवश्यकता है। 
 वित्तमंत्री ने कहा है कि राज्यों के वित्त मंत्रियों की अधिकार प्राप्त समिति और केन्द्र सरकार माल और सेवा कर (जीएसटी) पर मिलकर सहयोग कर रहे हैं, जो प्रत्यक्ष कराधान में एक महत्वपूर्ण सुधार है। इससे देश में एकरूप कर ढांचा बनाया जा सकेगा। बहरहाल, हरियाणा ने केन्द्र सरकार से आग्रह किया है कि खाद्यान्न पर खरीद कर/वैट को जीएसटी के तहत सम्मिलित न किया जाए। 
हरियाणा के वित्त मंत्री कैप्टन अभिमन्यु, ने राज्य के वित्त मंत्रियों की अधिकारी प्राप्त समिति की बैठक में कहा कि इस समय हरियाणा खाद्यान्न पर वैट/खरीद कर लगा रहा है और लगभग 1000 करोड़ रुपये का राजस्व एकत्रित कर रहा है। बहरहाल, जीएसटी के अन्तर्गत यह प्रस्तावित किया गया है। बहरहाल, जीएसटी व्यवस्था के अन्तर्गत प्रस्तावित किया गया है कि खाद्यान्नों को टैक्स से छूट दी जाए। उन्होंने कहा कि हरियाणा ने वर्ष 2014-15 के दौरान किसानों को बिजली पर लगभग 5600 करोड़ रुपये की सब्सिडी दी है। सिचांई के लिए पानी भी अत्यधिक रियायती दरों पर दिया जा रहा है और पिछले कईं दशकों की भारी लागत पर कृषि उत्पाद के विपणन के लिए विस्तृत आधारभूत ढांचा स्थापित किया गया है, जिससे हरियाणा खाद्यान्न सरप्लस राज्य बना है। उन्होंने कहा कि यदि अब इसके सरप्लस कृषि उत्पाद से कोई राजस्व सृजित नहीं होता है तो राज्य के लिए इस आधारभूत ढ़ांचे को बनाए रखना संभव नहीं होगा। वास्तव में इसके बिना समस्त कृषि क्षेत्र को धक्का लगेगा। इसलिए राज्य का तर्क है कि या तो खाद्यान्नों को  जीएसटी के अधिकार क्षेत्र से बाहर रखा जाए या राज्य को इस कारण से होने वाले राजस्व नुकसान के लिए स्थायी आधार पर प्रतिपूर्ति की जाए। 
उन्होंने कहा कि खाद्यान्नों पर वैट के सम्मलित किये जाने के कारण हरियाणा का राजस्व नुकसान लगातार और स्थायी प्रकृति का होगा। इसलिए पांच वर्षों का क्षतिपूर्ति का मैकेनिजम अपर्याप्त होगा। नुकसान की प्रकृति और खाद्यान्न उत्पादक राज्यों के राजस्व पर स्थायी प्रभाव पडऩे पर विचार करते हुए हरियाणा सरकार ने पहले ही केन्द्रीय वित्त मंत्री के समक्ष प्रस्ताव रखा है कि भारत के संविधान की अनुसूची सात में राज्य सूची की सूची-ढ्ढढ्ढ में एक नई प्रविष्टि शामिल की जाए, जो इन राज्यों को कर शक्तियां प्रदान करेगी। उन्होंने कहा कि यह ढांचा खाद्यान्न उत्पादक राज्यों को खाद्यान्न पर कर लगाने और राष्ट्रीय खाद्यान्न पुल में अपना योगदान बनाए रखने के लिए सक्षम बनाएगा, किसानों को पर्याप्त सहयोग प्रदान करेगा तथा स्थायी आधार पर उनके राजस्व की सुरक्षा भी करेगा। 
देश में प्रस्तावित जीएसटी व्यवस्था का सुचारू क्रियान्वयन सुनिश्चित करने के दृष्टिगत मंत्री ने सुझाव दिया कि रोड मैप के सम्बंध में दिशानिर्देश होने चाहिए जिन्हें समय पर जारी किया जाए। केन्द्रीय वित्त मंत्रालय द्वारा यथाशीघ्र विभागीय कर्मचारियों और पनधारकों के लिए प्रशिक्षण और सेमिनारों का आयोजन किया जाए। 
कैप्टन अभिमन्यु ने कहा कि हरियाणा सरकार का दृष्टिकोण है कि राज्यों को अन्तर्राज्यीय व्यापार या वाणिज्य के लिए सेवाएं देने पर अतिरिक्त कर लगाने की शक्तियां भी दी जाएं। उन्होंने कहा कि प्रदेश की अर्थव्यवस्था के लिए सेवा क्षेत्र का योगदान कईं गुणा बढ़ गया है। इस समय केन्द्र सरकार अधिकार क्षेत्र के सेवा कर लगाने से प्रदेश को कोई राजस्व की वृद्धि नहीं होती। प्रस्तावित जीएसटी व्यवस्था से  राज्य सेवा आपूर्ति पर सेवा कर लगाने के लिए सक्षम हो जाएगा। संसद में पारित 122वें संविधान संशोधन विधेयक, 2014 के खंड 18 में अन्तर्राज्यीय व्यापार या वाणिज्य के सामान की आपूर्ति पर अतिरिक्त कर लगाने का प्रावधान का प्रस्ताव किया गया है। उन्होंने कहा कि हरियाणा प्रस्ताव करता है कि राज्यों को भी सामान की आपूर्ति करने के अलावा अन्तर्राज्यीय व्यापार या वाणिज्य की सेवा आपूर्ति पर अतिरिक्त कर लगाने के लिए प्राधिकृत किया जाना चाहिए।
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