राष्ट्रीय (17/05/2015) 
परमात्मा का साक्षात्कार ही धर्म है-वैैष्णवी भारती
दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान की ओर से चल रही श्रीमद्भागवत कथा नवाह ज्ञानयज्ञ के नौवें एवं अंतिम दिवस की सभा में सर्व आशुतोष महाराज की शिष्या साध्वी वैैष्णवी भारती ने बहुत ही सुसज्जित ढंग से भगवान श्रीकृष्ण जी के अलौकिक एवं महान व्यक्तित्व के पहलुओं से अवगत करवाया। रूक्मिणी विवाह प्रसंग के माध्यम से सीख मिलती है कि प्रभु उस आत्मा का वरण करते हैं जिसमें उन्हें प्राप्त करने की सच्ची जिज्ञासा हो। मुण्डकोपनिषद का सूत्रा कहता हैकि वह परमात्मा न तो उनको प्राप्त होता है जो तर्क में प्रमत्त हुई बु(ि के द्वारा उन्हें समझने की चेष्टा करते हैं या जो शास्त्रों को पढ़ सुनकर नाना प्रकार से परमात्म तत्व का विवरण प्रस्तुत करते हैं। न ही उनको प्राप्त होते हैं जो ईश्वर के विषय में सुनते रहते हैं। वे उन्हें मिलते हैं जो उनको पाने की उत्कट इच्छा रखते हैं। प्रभु ने यह संसार बना कर एक सुंदर खेल खेला। हमें निश्चित समय तक अनमोल श्वांसों की पंूजी देकर इस ध्रा पर भेजा और स्वयं हमसे छुपकर बैठ गया। इस खेल का लक्ष्य था-प्रभु को खोजना। ईश्वर के प्रति अपनी जिज्ञासा को प्रकट करना। परंतु हम खेल के लक्ष्य को भूल गये। हमारी जिज्ञासा भौतिक पदार्थों की ओर हो गयी। मनुष्य ने सागर, पठार, ग्रह-उपग्रह इत्यादि की खोज तो कर ली परंतु स्वयं के बोध् की पृष्ठभूमि से अनभिज्ञ ही रह गये। मछली जैसा क्षुद्र जीव भी अंडे देने के लिए जल की निचली तह पर जाता है। जीवन यापन के लिए बुद्धि लड़ाता है। हमें भी अपनी श्रेष्ठ बुद्धि से श्रेष्ठ जिज्ञासा करनी चाहिए। ईश्वर दर्शन की प्राप्ति कैसे हो? अध्यात्म का मर्म क्या है? यह ब्रह्मज्ञान के माध्यम से ही जाना जा सकता है। भगवान की प्रकृति हमें शुभ ग्रहण करने का संकेत करती है। हरे भरे पेड़, रंग-बिरंगे पफूल, पर्वतों पर ढकी सपफेद बपर्फ की चादर, आसमान में सजी सतरंगी इन्द्रध्नुष! यदि ये रंग न होते तो रंगहीन सृष्टि कैसी दिखायी देती निष्प्राण! नीरस! सचमुच चारों दिशाओं की इन सतरंगी छटाओं में सृष्टि अपना आंचल भिगोती है, तभी वह अपना मनोरम रूप पाती है, सजीव, सरस प्राणमय हो उठती है। इस प्रकार प्रकृति प्रत्येक मानव को भी यही प्रेरणा देती है- ' आ नो भद्राः क्रतवो यन्तु विश्वतः हर दिशा से शुभ विचारांे को ग्रहण करो। उनसे मिलने वाली प्रेरणाओं के रंग भरकर अपना जीवन सुंदर औैर सरस बनाओ। इतिहास बताता है कि राजा जनश्रुति जिसने हंसों के जोड़े से प्रेरणा लेकर ब्रह्मज्ञान के लिए रैक्व नामक गाड़ी वाले की शरण ली। दत्तात्रोय जहां अग्नि से उन्होेेंने तप और उष्णता के गुण सीखे, पृथ्वी से सहनशील बनने की शिक्षा पाई। समुद्र से अचल बनने की प्रेरणा ली। आकाश से विस्तृत होने के साथ-साथ निलप्त बनना सीखा। उन्होंने प्रकृति के 24 आयामों में से अपने लिए अनमोल प्रेरणाएं चुनीं।
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