राष्ट्रीय (16/05/2015) 
​बेहतर अभिनेता बनना मेरे जीवन की अग्नि परीक्षा है-अभिनव कुमार
   अभिनव कुमार ! जी हाँ यह स्क्रीन नाम है उस न्यू फाइंड यानि उभरते हुए नवोदित अभिनेता का, जिसने हॉल ही में सोशल,फैमिलियर थ्रिलर 'जी लेने दो एक पल' से बड़े स्क्रीन पर हीरो के रूप में बॉलीवुड में दस्तक दी है। अभिनव कुमार का वास्तविक नाम है -ध्रुव कुमार सिंह. संघर्ष की एक लंबी पारी पार कर अभिनव कुमार ने यूं तो कई छोटी बड़ी फिल्मों में छोटी भूमिकाएं की जिनमें मशहूर निर्माता और निर्देशक अनिल शर्मा कृत 'अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों' ज्यादा महत्वपूर्ण रही। इस फिल्म में उन्हें नोटिस में भी लिया गया। इसी बीच अभिनव कुमार को इक्की दुक्की रीजनल फिल्में मिली मगर उनका फॉकस बॉलीवुड पर ही रहा आखिरकार वक्त उन पर मेहरबान हो ही गया और जाने माने एजुकेशनिस्ट, सीरियल स्कूल्स, कॉलेजेज के चेयरमेन और फिल्म डिस्ट्रीब्यूटर,प्रोड्यूसर और प्रेजेंटर शरद चंद्र ने कहानीकार-निर्देशक संजीव राय के निर्देशन में अपनी फिल्म 'जी लेने दो एक पल' के नायक का रोल उन्हें सौंप दिया और इस तरह अभिनव  कुमार ने  अपनी ड्रीमजर्नी का पहला कदम बॉलीवुड में रख दिया। शरद चंद्र प्रस्तुत और वेदर फिल्म्स कृत 'जी लेने दो एक पल' की मुम्बई के परवानी स्टूडियो में चल रही शूटिंग के दौरान उनसे  कैरियर और फ्यूचर की प्लानिंग को लेकर बातचीत हुईः
'क्या हिंदी फिल्मों  का हीरो बनना आपका चाइल्डहुड ड्रीम रहा?
-हाँ  बचपन से  ही मैं  हिंदी फिल्मों  का  दीवाना रहा हूँ, कई फिल्मों ने मेरे अंदर अपने घर बना लिए हैं जो लगातार मुझे इसी दिशा में काम करने के लिए प्रेरित करती हैं सच  मानिए मेरा और किसी काम  में मन ही नहीं लगता बस एक ही धुन और एक ही मकसद -फिल्म..फिल्म.!

अच्छा जब आपने फिल्मों में हीरो बनने के लिए  मुम्बई जाकर स्ट्रगल करने की ठानी तो घरवालों  ने क्या रियेक्ट किया? क्या वो आपके फैसले से सहमत थे ?
-कतई नहीं ,चूँकि मैं एक मध्यम वर्गीय परिवार से ताल्लुक रखता हूँ ,जहाँ लोग अपने बच्चों को डॉक्टर,इंजीनियर, कलेक्टर बनाने के सपने ही नहीं देखते बल्कि उन्हें पूरा.करने के लिए अपनी जमीन जायदाद तक बेचने में पीछे नहीं हटते। मेरे माता-पिता  भी मुझे डॉक्टर बनाना चाहते थे,मेरा रुझान शुरू से फिल्मों की तरफ रहा ..जब उन्हें मेरी मंशा का पता चला तो वो लोग बहुत नाराज हुए, मगर मेरे बड़े भाई साहब वीरेंद्र प्रधान ने मेरा बहुत साथ ही नहीं दिया बल्कि आगे बढ़ाने में आर्थिक मदद भी की।

'आपने फिल्मों में हीरो बनने  के लिए क्या प्लानिंग की ?
-सांइस में ग्रेजुएशन करने के बाद मैंने प्रीमेडिकल एग्जाम दिए मगर बात ना बन सकी,क्योंकि मेरे दिलो दिमाग पर एक्टर बनने का फितूर जो सवार था.उसी फितूर के तहत मैंने दिल्ली के एन.एस. डी. में एक्टिंग कोर्स के लिए एप्लाय किया मगर रिटर्न टेस्ट में अटक गया, लेकिन जरा सा भी निराश नहीं हुआ और खूब  मेहनत और लगन से श्रीराम आर्ट और कल्चर सेंटर से एक्टिंग का डिप्लोमा किया और फिर मुम्बई की ओर कंूच कर गया। मुम्बई में कर्नल कपूर और रणवीर सिंह की डोक्युमेंटिरी फिल्में में छोटे मोटे रोल्स  किए और स्ट्रगल शुरू  कर दिया ।

'पहली फिल्म कौन सी रही जिसमें आपने काम किया?
-सबसे पहली फिल्म अब तुम्हारे हवाले वतन साथियोंमें मुझे एक पारिवारिक मित्र के जरिये एक छोटा सा रोल मिला.अमिताभ बच्चन.अक्षय कुमार.और बॉबी देओल.की कास्ट वाली अनिल शर्मा जैसे नामी -गिरामी निर्देशक के साथ काम करने  का  मौका  मिला और इंडस्ट्री को करीब  से देख पाया।

आपका फिल्म 'जी लेने दो एक पल में हीरो के तौर पर चयन कैसे हुआ? इस फिल्म की यूएसपी क्या है?

-'जी लेने दो एक पलकी कहानी ही यूएसपी है पिछले दो साल से कहानीकार और निर्देशक.संजीव रॉय इस पर काम कर रहे थे,कई बार प्लानिंग बनी कभी अर्थ ने तोडय्ा तो कभी परिस्थितियों ने तोड़ा मगर हमने इरादों को कभी टूटने नहीं दिया और आखिरकार शरदचंद्र जैसे  कर्मठ और विजनरी प्रजेंटेर को हमारी फिल्म का प्रपोजल बहुत पसंद आया.कहानी और चारित्रिक विश्लेषण के अनुसार फिल्म के नायक के रोल में सबको मैं जंचा.मुझे इस बात की भी खुशी है कि सभी की कसौटी पर खरा उतरा।

"जी लेने दो एक पल के आप हीरो हैं,यह किस तरह का कैरेक्टर है क्या यह किरदार आज के दौर को रिप्रेजेंट करता है?
-बतौर हीरो 'जी लेने दो एक पल मेरी पहली फिल्म है यह पूरी तरह से पारिवारिक पृष्ठभूमि पर आधारित है। इसमें पति-पत्नी के रिश्ते में आस्था और विश्वास को मुस्तैदी से पिरोया गया । जब इसके नायक शेखर से परिस्थितिवश अपने रिश्ते की लक्ष्मण रेखा को लांगने की भूल हो जाती है तो वह आत्मग्लानि के साथ  अपनी पत्नी सुधा को  कैसे फैस करता है सुधा का संभल उसे और उसके परिवार की अस्मिता को कैसे बचाता है यह एक खट्टी मीठी जर्नी है।कैसा भी दौर हो फिल्मों से आप परिवार और उनसे जुड़े प्रसंग कभी  भी अलग नहीं कर सकते।

सुनने में आया है कि आपकी फिल्म के निर्देशक संजीव राय बहुत कुशल स्क्रीन राइटर हैं और उम्दा टेक्नीशियन भी आपके उनके साथ वर्किंग एक्सपीरियन्स कैसे रहे?
-आपने सही सुना है संजीव जी जितने बढ़िया निर्देशक हैं,उतने ही अच्छे और संवेदनशील लेखक हैं जमीन से जुड़े कई कथ्यों का भंडार है उनके पास,'जी लेने दो एक पल का जो लिरिकल ट्रीटमेंट वो दे रहे हैं  मुझे लगता है फिल्म की सफलता का एक बहुत बड़ा हिस्सा होगा। उनके साथ मेरे साथ बहुत अच्छे अनुभव रहे, पूरी फिल्म हमने एक साथ जी है.उन्होंने मुझसे  किरदार के अनुरूप वाजिब एक्टिंग करा ली है।

बॉलीवुड के सपने आपके जीवन के अंग रहे हैं तो कौन सा अभिनेता आपका रोल मॉडल रहा ?
-आप.मुझे आउटडेटिड मत कहियेगा मैं  जो आपको बता रहा हूँ वो कॉमन नहीं, शत प्रतिशत सच है.मुझे एक्टिंग एम्पायर दिलीप कुमार साहब और अमिताभ बच्चन के  जीवंत अभिनय ने बेहद प्रभावित  किया है.और यही दो विभूतियां मेरी रोल मॉडल रही हैं।

आपके जीवन  का गोल. क्या है?
-एक  बढ़िया अभिनेता बनना  है अभी शुरुआत  है  इससे ज्यादा कहना उचित  नहीं होगा।

प्रेमबाबू शर्मा  
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