राष्ट्रीय (15/05/2015) 
आत्मज्ञान को प्राप्त कर अपनी शक्ति को पहचाने - वैैष्णवी भारती
दिल्ली। दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान की ओर से श्रीमद्भागवत कथा नवाहयज्ञ का भव्य आयोजन किया गया। जिसमंे सर्व आशुतोष महाराज जी की शिष्या साध्वी सुश्री वैष्णवी भारती जी ने सप्तम दिवस की सभा में प्रभु की बाल लीलाओं को प्रस्तुत किया। उन्होंने नटखट बाल गोपाल श्रीकृष्ण जी की मिट्टी खाने वाली लीला का वर्णन किया। दाउफ की शिकायत करने पर यशोदा मैया ने कन्हैया कर मुख खुलवा लिया। माँ क्या जानती थी कि नन्हें से लल्ला के मुख में सारा ब्रह्मांड समाया हुआ है। यशोदा माँ ने चाँद, सितारें, ध्रती, अम्बर,नदियाँ, सागर, बाग बगीचे इत्यादि सारे प्रकृति के नज़ारे कन्हैया के मुख देख लिए। प्रभु हमें इस लीला से समझाते हैं जैसा दृश्य मैया ने देखा ऐसा दृश्य अर्जुन ने भी कुरूक्षेत्र में देख लिए। ईश्वर और 
सृष्टि के समस्त नज़ारें हमारे इस मानव तन के भीतर ही है। जैसे कम्प्यूटर की छोटी सी माइक्रोचिप में कितने गीगाबाइट डाटा आ सकता है। ठीक वैसे ही इस पांच से छः पफुट के मानव तन में वह ईश्वर समाहित है। बस दिव्य चक्षु के खुलते ही हम अपने घट में दिव्य नज़ारांे को देख सकते हैं। 
गोर्वध्न लीला के रहस्य को हमारे समक्ष बहुत सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया। नंद बाबा ओर गांव की ओर से इन्द्रयज्ञ की तैयारियां चलते देख कर भगवान श्रीकृष्ण उनसे प्रश्न पूछते हैं। उनको गोवर्धन पर्वत तथा ध्रती का पूजन करने हेतु उत्साहित करते हैं। प्रभु का भाव यह था जो ध्रती वनस्पति जल के द्वारा हमारा पोषण कर रही है। उसकी वंदना और पूजा करनी चाहिए। ध्रती का प्रतीक मानकर गोवर्धन पर्वत की पूजा की गई। छप्पन व्यंजनों का भोग भगवान को दिया गया। इन्द्र के अभिमान को ठेस लगी तो उसने सात दिन तक मूसलाधर बारिश के द्वारा गोकुल के लोगों को प्रताडि़त करने का प्रयास किया। परंतु भगवान ने अपनी कनिष्ठिका के उफपर धरण कर सभी की रक्षा की। भगवान श्रीकृष्ण जी ने कालिया नाग के कल्याण की लीला से हमें सीख दी। वह जानते हैं कि युवा में अदभुत शक्ति समाहित होती है। असंभव कार्य को संभव करना युवाओं को ही आता है। जब-जब भी समाज का कायाकल्प करने के लिये नौजवान आगे बढ़े, तब समाज ने नूतन परिवर्तन सामने पाया। संकट चाहे सीमाओं का हो या राजनैतिक इस के निवारण के लिये युवक-युवतियों ने बढ़चढ़ कर भाग लिया है। परंतु आज युवा पथभ्रष्ट हो चुका है। नशाखोरी, अश्लीलता, चरित्राहीनता आदि व्यसन उन के जीवन में आ चुके हैं। उन्हें देश, समाज से कुछ लेना देना नहीं है। हमें समझना होगा कि यौवन इस बात पर निर्भर नहीं करता है कि हम कितने छोटे हैं, अपितु इस पर कि हम में विकसित होने की क्षमता एवं प्रगति करने की योग्यता कितनी है। विकसित होने का अर्थ है- अंतरनिहित शक्तियों का जागरण। जब शक्ति का जागरण होता है तो सर्वप्रथम व्यक्ति मानव बनता है पिफर वह अपनी संस्कृति से प्रेम करता है। तब मां भारती के लिए मरमिटने की भावनाएं पैदा होती हैं। आध्यात्मिक उफर्जा के मन में स्पंदित होते ही कर्तव्य बोध्, दिशा बोध् का भान होता है। जब दिशा का पता चलता है तो दशा सुध्र जाती है। स्वामी विवेकानंद जी, स्वामी रामतीर्थ जी महान देशभक्त हुए हैं। इन्होने विदेशों में जाकर भारतीय संस्कृति का बिगुल बजाया तो इसके पीछे आध्यात्मिक शक्ति ही कार्यरत थी। 
श्रीमद् भगवदगीता युवकों का आहवान करती है कि ब्रह्मज्ञान को प्राप्त कर अपनी उफर्जा को पहचानें। अर्जुन जैसा नवयुवक आत्मज्ञान को प्राप्त कर अपनी शक्ति को पहचान पाया था।

Copyright @ 2019.