राष्ट्रीय (13/05/2015) 
परमात्मा का साक्षात्कार ही धर्म है -वैैष्णवी भारती
दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान की ओर से श्रीमद्भागवत कथा नवाह ज्ञानयज्ञ के अंर्तगत पांचवें दिन की सभा में आशुतोष महाराज की शिष्या साध्वी वैष्णवी भारती ने समुद्र मंथन प्रसंग का व्याख्यान दिया। मंथन देवता तथा दैत्यों के द्वारा किया गया। भगवान विष्णु जी के कथनानुसार सागर में से बहुत से रत्नों की प्राप्ति होगी। जिनमें से अमृत भी एक है जिस का पान कर अमरता को प्राप्त किया जा सकता है। सागर के गर्भ से प्रथम रत्न विष बाहर निकला। जो सभी दिशाओं में फैलने लग पड़ा। देवताओं ने देवों के देव महादेव को प्रार्थना की। भोलेनाथ सृष्टि के कल्याण हेतु विषपान कर गए। उन्होने विष को कंठ में ही रोक लिया। इस कारण उनका एक नाम पड़ गया 'नीलकंठ'। प्रभु ने हमें शिक्षा प्रदान की, यदि तुम्हें संसार के विष रूपी कड़वे वचन भी सुनने को मिलें तो उसे दिल में मत लेकर जाना अपितु गले में ही रोक लेना। इस प्रकार जीवन में सुखी रहा जा सकता है। लक्ष्मी जी समुद्र में से प्रकट होकर श्रीनारायण को वर रूप में स्वीकार करती है। हमें सीख दी कि नारायण को पाने का प्रयास करो। लक्ष्मी स्वयं तुम्हारे पीछे आयेगी। मंथन में से घोड़ा, पारिजात वृक्ष, अप्सराऐं, कामधेनू गाय, रथ, तरकस, बाण, अमृत बाहर निकलें। 
जिन्हें देव और दानव सभी ने आपस में विभाजित कर लिया। आज भी यह मंथन संभव है। विज्ञान को यदि हम दैत्य मान लें और अध्यात्म को देवता मान लें तो हमें यह सागर मंथन का रहस्य समझ में आ सकता है। अध्यात्म कहता है कि अमृत की प्राप्ति मेेरे द्वारा हो सकती है और विज्ञान कहता है कि मेरे द्वारा। आइए दोनोेेें की कार्यप्रणाली पर नज़र दौड़ाएं। आज का विज्ञान अपनी चरम सीमा पर है। उसने अनेक रहस्यमय ग्रहांे की खोज की ओर उन पर कदम रखने के लिए भी तत्पर हो रहा है। परंतु दुनिया के अंदर अनेकों ही वस्तुओं के ढेर लगाने वाले विज्ञान बल होने पर भी आत्म हत्याओं की दर क्यों बढ़ रही है? दिन प्रतिदिन अशांति क्यों बढ़ रही है? विज्ञान ने चाहे अनेक बीमारियों का समूल नाश कर दिया है। हैज़ा व चेचक जैसी बीमारियों को जड़ से उखाड़ दिया है पर ऐडज़ जैसी महामारी भी तो उत्पन्न की है। विज्ञान एक आंसू का विशलेषण तो कर सकता है कि आंसू खनिज, नमक, पानी का मिश्रण है पर अध्यात्म कहता है कि आंसू सिर्फ इन सबका मिश्रण ही नहीं है। उनके पीछे भावना, प्रेम, दुःख का प्रकटीकरण भी हो सकता है। विज्ञान यह नहीं जानता कि हम सबका इस धरती पर आने का लक्ष्य क्या है? ऐसी खोज करना तो अध्यात्म ही सिखाता है। मंगल ग्रह की खोज तो विज्ञान ने की पर हमारे जीवन में मंगल कैसे आए, यह अध्यात्म ही बता सकता है। वैज्ञानिक खोजें बाहर की ओर लेकर जाती हैं पर अध्यात्म हमें भीतर की यात्रा करना सिखाता है। इसलिए अध्यात्म को जानकर ही जीवन के अमृत को पाया जा सकता है। उसके उपरांत प्रभु के अवतारवाद के विषय में बताया गया। द्वापर में कंस के अत्याचार को समाप्त करने के लिए प्रभु धरती पर आए। उन्होंने गोकुल वासियों के जीवन को उत्सव बना दिया। कथा के माध्यम से नंद महोत्सव की धूम देखने वाली थी। साध्वी और स्वामीजनों ने मिलकर प्रभु के आने की प्रसन्नता में बधवा गाया। आज गोकुल के उत्सव को देखने का अवसर सभी को प्राप्त हो गया।
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