राष्ट्रीय (12/05/2015) 
प्रभु ने नरसिंह अवतार धरण कर अधर्म और अन्याय को समाप्त किया - वैैष्णवी भारती
दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान की ओर से श्रीमद्भागवत महापुराण नवाह कथा ज्ञानयज्ञ का आयोजन राम लीला ग्राउंड, गीता काॅलोनी के पीछे, कड़कड़डूमा में किया जा रहा है। ज्ञान की पयस्विनी श्रीमद्भागवत कथा नवाह ज्ञानयज्ञ के चतुर्थ दिवस में सर्व आशुतोष महाराज जी की शिष्या साध्वी सुश्री वैष्णवी भारती जी ने जड़भरत प्रसंग को प्रस्तुत किया। उन्होंने बताया कि जड़भरत जीे को उसके परिवार के सदस्यों ने उन्हें निकम्मा जानकर खेतों में पफसल की रखवाली करने के लिए भेज दिया। वहां से जड़भरत जी को काली माता के सामने बलि के रूप में चढ़ाने के लिए भील जाति के सैनिक ले गए। काली माँ ने मूत में से प्रकट होकर जड़भरत जी की रक्षा की। कुदरत को भी मां का दर्जा दिया गया है। आज प्रकृति का दोहन कर रहा है मानव। इसलिए प्रकृति संहारक चंडिका का रूप धरण कर चुकी है। अन्न, धन्य से हम सब को परोसने वाली प्रकृति माँ रौद्ररूपा स्वरूप धरण कर चुकी है। कहीं ज्वालामुखी पफटतें हैं, कहीं चक्रवात, सुनामी, भुखमरी जैसी समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं। 
कारण यही है हमने प्रकृति के संतुलन को खराब किया है। प्रकृति का यह अटल नियम है कि जैसी क्रिया वैसी प्रतिक्रिया होती है। यदि क्रिया सकारात्मक है तो प्रतिक्रिया भी अच्छी ही मिलेगी। यदि क्रिया गलत है तो परिणाम भी हानिकारक होगा। जब मनुष्य अपनी आत्मा से जाग्रत होता है तो प्रकृति का दोहन नहीं उसका पूजन करता है। कभी समय था इस ध्रती के उफपर शांति गीत गुंजायमान हुआ करते थे। वनस्पति शांत हो, अंतरिक्ष शांत हो, औषध्यिां शांत हो, ध्रती शांत हो और ध्रती पर रहने वाला मानव भी शांत हो। जब मानव का मन संतुलित होगा तो यह प्रकृति अपने आप ही संतुलन में चलेगी। इसीलिए आज आवश्यकता है उस ब्रह्मज्ञान की जिसके माध्यम से मानव का मन शांत हो पिफर सारे ब्रह्मांड को वह शांत रख सकता है।! युगों युगों से भारत की ध्राधम को पवित्रा करती आ रही हैैैैैै गंगा नदी। यह साधरण नदी नहीं है। क्योंकि एक प्राकृतिक नदी वह जो स्वयं बहे। संस्कृत में नद का अर्थ है- बहना। नदी शब्द नद से बना है। पर गंगा स्वयं नहीं बही, बहायी गई है। इसे भगीरथ ने खोजा। यह ब्रह्मा, विष्णु, भगवान शंकर की जटाओं से होती हुई पृथ्वी पर आई है। इसलिए यह देव तुल्य है। अब्दुल-पफ़ज़ल ने आईन अकबरी में पतित पावनी गंगा के संबंध् में लिखा कि अकबन बादशाह को गंगा जल से इतना प्रेेम था कि वह घर में या यात्रा में गंगा जल ही पिया करता था। गंगा माँ की गोद इतनी विशाल है कि इसमें तीनों लोक समा जाते हैं। गंगा किसी एक जाति के लिए प्रवाहित नहीं होती है, किसी एक की माँ नहीं है अपितु वो सम्पूर्ण प्राणी मात्रा की माँ है इसलिए मुसलमान कवियों ने भी दिल खोल कर गंगा का गुनगाण किया है। कवि रहीम ने कहा- हे भगवती गंगे! यदि तुम किसी पुण्य आत्मा को तार देती हो तो इसमें तुम्हारा क्या महत्त्व है? वो तो अपने पुण्य से तर जाता है। तुम्हारा महत्त्व तो मैं तब जानू जब मुझ जैसे पापी को भी तारो। सन् 1947 मंे जर्मनी के जल तत्त्व विशेषज्ञ कोहीमान भारत आए। उन्होंने वाराणसी से गंगा जल लिया व उसका परिक्षण किया। एक लेख लिखा जिसका सार था कि इस नदी के जल में कीटाणु रोगनाशक विलक्षण शक्ति है जो संसारभर में किसी अन्य नदी के जल में नहीं है। इसके भौतिक लाभ तो हैं पर आलौकिक भी है इस जल को पीने वालों में सात्त्विक वृति का संचार होता है। सूर्य की किरणें गंगोतरी हिमखंड को पिघलाती है तो जल गंगा में आता है और पवित्रा बनाता है। रात में चाँद की रश्मियां उसे जमा देती हैं। यह प्रतिदिन चलता है जो इसे विशिष्ट बना देता है। वैज्ञानिक मानते हैं कि यदि साधरण जल को सौ बार डिस्टिल करें वह विशिष्ट हो जाता है। गंगा तो प्राकृति ढंग से रोेज़ डिस्टिल होती है। पर ग्लोबर वामंग के कारण गंगोतरी का अस्तित्व खतरे में है। आज गंगा जल की पवित्रता पर प्रश्नसूचक चिन्ह गंगा का नहीं, हमारा है।  इसलिये अपनी सांस्कृतिक ध्रोहर की रक्षा करें। साध्वी जी ने प्रहलाद प्रसंग के माध्यम से भक्त और भगवान के संबंध् का मामक चित्राण किया। प्रहलाद के पिता हिरण्यकश्यिपु के द्वारा उसे पहाड़ की चोटी से नीचे पफैंका गया, विषपान करवाया, मस्त हाथी के आगे ड़ाला गया। परंतु भक्त प्रहलाद भक्तिमार्ग से विचलित न हुए। भक्त की रक्षा करने प्रभु स्तम्भ में से प्रकट होते हैं। नरसिंह अवतार धरण कर उन्होने अध्र्म और अन्याय को समाप्त कर सत्य की पताका को पफहराया।
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