वस्तुतः धर्मों
ने घाटी में
अत्याधिक
दर्शनीय
इमारतों के निर्माण
को प्रेरित
किया और इनमें
कला एवं
स्थापत्य कला
के सभी रूप
देखने को
मिलते है। यह
धार्मिक
वैशिष्ट्य ही
है कि
जम्मू-कश्मीर के
तीनों
क्षेत्रों की
एक अद्वितीय
पहचान है।
जहां कश्मीर
घाटी को
सूफीयों की
कर्मस्थली
माना जाता है।
वहीं जम्मू
शहर मंदिरों
की नगरी तथा
लद्दाख अपने गुंफा
और बौद्ध मठों
के लिए
प्रसिद्ध है।
इस प्रकार
राज्य के सभी
तीनों
हिस्सों में
सामान्य
पर्यटन के
अलावा
धार्मिक
पर्यटन के
फलस्वरूप
अत्यधिक
चहल-पहल रहती
है।
सरकार
के स्तर पर
जम्मू और
कश्मीर में
धार्मिक
पर्यटन को
समुचित बढ़ावा
देने के लिए
प्रयास किए जा
रहे हैं, ताकि
यह आध्यात्मिक
एवं धार्मिक
पर्यटन का केन्द्र
बन सके। इस
योजना को
कार्यरूप
देने के लिए
विशेष
आधारभूत
ढ़ांचे का निर्माण
किया जा रहा
है। पर्यटन
मंत्रालय भी
जम्मू, कश्मीर
और लद्दाख क्षेत्रों
में आध्यात्मिक
क्षेत्रों के
सृजन पर विचार
कर रहा है।
जम्मू-कश्मीर
पर्यटन विभाग
की योजना है
कि धार्मिक
पर्यटन को
बढ़ावा दिया
जाए तथा
क्रियान्वयन
के लिए तीन बड़ी
परियोजनों पर
विचार किया
गया है और
इनकी विस्तृत
परियोजना
रिपोर्ट
(डीपीआर), भारत
सरकार को सौंपी
जा चुकी है। 150
करोड़ रुपए
लागत वाली
परियोजना तीन
क्षेत्रों
में पर्यटन
सर्किटों के
विकास के
उद्देश्य
तैयार की गई
है। वही 50 करोड़
रूपए की
अनुमानित
लागत का उपयोग
लद्दाख में
बौद्ध से
संबंधित
पर्यटन को
बढ़ावा देने
के लिए किया
जाएगा।
कश्मीर
के प्रसिद्ध
धार्मिक
पर्यटन
स्थलों में
हजरतबल,
खेरबावानी
तथा अमरनाथ
गुफा शामिल
है। किन्तु
अमरनाथ गुफा
वह स्थल है,
जहां सबसे
ज्यादा
तीर्थयात्री
आते हैं। इस
प्रकार हम कह
सकते हैं कि
श्रद्धालुओं
की संख्या की
दृष्टि से
अमरनाथ सबसे बड़ा
धार्मिक
पर्यटन स्थल
है। अमरनाथ की
यात्रा न केवल
हिन्दुओं
अपितु
मुस्लिमों के
लिए भी विशेष
महत्व रखती
है। यात्रा के
कुशल संचालन
के लिए
मुस्लिमों को
अपनी सेवाएं
प्रदान करते हुए
देखा जा सकता
है। इस प्रकार
धार्मिक माहौल
में यह
धार्मिक
यात्रा
धर्मनिरपेक्षता
का उदाहरण पेश
करती है। इससे
पारस्परिक
विचार-विमर्श
एवं विभिन्न
धार्मिक
समुदाओं के
बीच सामंजस्य
का अवसर
प्राप्त होता
है, जो
सांप्रदायिक
एकता की भावना
को प्रोत्साहित
करता है।
अमरनाथ
गुफा हिंदुओं
का तीर्थ स्थल
है और हिंदू
देवता शिव को
समर्पित यह
दक्षिण कश्मीर
के
हिमालयवर्ती
क्षेत्र में
है। यह श्रीनगर
से लगभग 141 किमी.
की दूरी पर 3,888
मीटर (12,756 फुट) की
उंचाई पर
स्थित है। इस
तीर्थ स्थल पर
पहलगाम और बालटाल
मार्गों से
पहुंचा जा
सकता है। इस
स्थल की गिनती
हिंदू धर्म
में सबसे
पवित्र स्थलों
में की जाती
है। यह गुफा
बर्फीले
पर्वतों से
घिरी हुई है।
गुफा भी वर्ष
में ग्रीष्म
ऋतु के तीन
महीनों (मध्य
जून से मध्य
अगस्त तक) को
छोड़कर
अधिकांश समय
बर्फ से ढकी
रहती है।
गर्मी के इन
तीन महीनों के
दौरान यह गुफा
तीर्थ यात्रियों
के लिए खोल दी
जाती है। गुफा
में बर्फ से बनने
वाले शिवलिंग
के दर्शन करने
के लिए हर
वर्ष हजारों
हिंदू
श्रद्धालू
अमरनाथ की
गुफा की
यात्रा करते
हैं।
ऐसा
माना जाता है
कि मध्यकाल के
बाद लोगों ने
इस गुफा को
भुला दिया था।
15वीं शताब्दी
में एक बार
फिर एक गडरिये,
बुट्टा मलिक
ने इसका पता
लगाया। कथा इस
प्रकार है कि
एक महात्मा ने
बुट्टा मलिक
को कोयले से
भरा हुआ एक
थैला दिया। घर
पहुंचने पर जब
उसने उस थैले
को सोने से
सिक्कों से
भरा हुआ पाया,
तो उसके
आश्चर्य का
ठिकाना न रहा।
खुशी के मारे
वह महात्मा का
धन्यवाद करना
चाहता था,
लेकिन वह महात्मा
उसे कहीं नहीं
मिला। इसकी
बजाय उसने
पवित्र गुफा
देखी और उसमें
उसे शिवलिंग
के दर्शन हुए।
उसने
ग्रामवासियों
को इसके बारे
में जानकारी
दी। तब से यह
तीर्थ यात्रा
का पवित्र
स्थल बन गया।
एक
अन्य कथा भृगु
मुनि से
संबंधित है।
समझा जाता है
कि काफी समय
पहले कश्मीर
घाटी जलमग्न
हो गई थी और
कश्यप मुनि ने
अनेक नदियों
और नालों के
जरिए इसका पानी
निकाल दिया।
इस प्रकार जब
पानी उतर गया,
तो भृगु मुनि
ने भगवान
अमरनाथ के
सबसे पहले दर्शन
किए। इसके बाद
लोगों ने
लिंगम के बारे
में सुना तो
यह आस्था वाले
सभी लोगों के
लिए यह भगवान
भोले नाथ का
स्थान बन गया
और तब से हर
वर्ष लाखों
लोग तीर्थ
यात्रा करते
हैं।
अमरनाथ
के तीर्थ
यात्रियों
द्वारा पूजा
करने के लिए
सरकार इसके
प्रबंध और
सुविधाएं
जुटाने पर
विशेष ध्यान
देती है।
इसमें
सुरक्षा को प्राथमिकता
दी जाती है साथ
ही तीर्थ
यात्रा
दुर्घटना
रहित रे यह सुनिश्चित
करने के लि
विशेष आय किए
जाते हैं। यात्रा
अवधि के दौरान
राज्य के बडी
संख्या में
कर्मचारियों
को काम पर
लगाया जाता
है, ताकि इस
धार्मिक
यात्रा के लिए
नागरिक और
चिकित्सा
सुविधाओं के
पर्याप्त
प्रबंध
सुनिश्चित
किए जा सकें।
वार्षिक
तीर्थ यात्रा
जम्मू और
कश्मीर श्री
अमरनाथजी
तीर्थस्थल
अधिनियम 2000 के
अंतर्गत गठित
श्री
अमरनाथजी
तीर्थस्थल बोर्ड
(एसएएसबी)
द्वारा
आयोजित की
जाती है। बोर्ड
की अध्यक्षता
जम्मू-कश्मीर
के राज्यपाल द्वारा
की जाती है, जो
इस बोर्ड के
पदेन अध्यक्ष
हैं। एसएएसबी
और राज्य
सरकार के
निर्देशों पर
प्रत्येक तीर्थयात्री
को मान्यता
प्राप्त डॉक्टर
का एक वैध स्वास्थ्य
प्रमाणपत्र
साथ ले जाना
होता है और
यात्रा शुरू
करने से पहले
पंजीकरण
कराना होता
है। तथापि
सरकार को इतनी
बड़ी संख्या
में तीर्थ
यात्रियों का
प्रबंध करने और
उनके लिए
सुविधाएं
जुटाने के लिए
काफी काम करना
पड़ता है।
विश्वास
आस्थावान
लोगों को
आध्यात्मिक
शक्ति प्रदान
करता है और
उनमें समाज
तथा पर्यावरण
के लिए
दायित्व की
भावना पैदा
करता है।
तीर्थ यात्री
पर्यावरण की
सुरक्षा की
जिम्मेदारी
लेते हैं और
इस बारे में
प्रशासन के निर्देशों
का पालन करते हैं।
नियम और
विनियमों का
कड़ाई से पालन
किया जाना
चाहिए
क्योंकि
प्रकृति का
नियम है कि
अकेले सब काम
नहीं किए जा
सकते। यदि हम
पर्यावरण का
संरक्षण
करेंगे, तो
पर्यावरण ही
हमें और हमारे
विश्वास को
बचाएगा।
पर्यावरण
की समस्या
सिर्फ कश्मीर
तक ही सीमित
नहीं है। बल्कि
इसने
अंतर्राष्ट्रीय
रूप धारण कर
लिया है और इस
चिंताजनक स्थिति
के लिए
वैश्विक
जागृति की
आवश्यकता
है। लेकिन कश्मीर
क्षेत्र की संवेदनशील
प्रकृति
विशेष रूप से
अमरनाथ गुफा
के आस-पास के
इलाके और उसकी
ओर जाने वाले
इलाकों की
संवेदनशील
प्रकृति के
कारण प्रशासन
इस बात का ध्यान
रखने का
प्रयास करता
है कि यात्रियों
की अधिकता के
कारण
पारिस्थितिक
रूप से कमजोर
किसी इलाके में
नुकसान न हों।
लेकिन वास्तविक
स्थिति इससे
अलग है।
अमरनाथ की यात्रा
के पीक सीजन
के दौरान
बालतल और
पहलगाम के दो
आधार कैंपों
में हजारों
टैंट लगे हुए
हैं। ये कैंप
किसी समय घास
के मैदान हुआ
करते थे। इससे
यात्रियों को
प्रदान की
जाने वाली
सुविधाओं का
भी पता लगता
है। कैंपों
में शौचालय की
सुविधा का
अभाव है और
अनेक
तीर्थयात्री
आधार कैंपों
के आस-पास से
बहने वाली
नदियों में
खुले रूप से
मल त्याग कर
देते हैं।
इसके अलावा कैंप
और गुफा की ओर
जाने वाले
रास्तों के
किनारे कूड़ा
निपटान तंत्र
का अभाव है जिसके
कारण समस्त
क्षेत्र प्लास्टिक
की बोतलों,
लिफाफों और
अन्य गैर
जैवीय कूड़े
से भर जाता
है। बल्कि
यात्रा के
बहुत समय बाद
तक भी यह
कूड़ा वहीं
जमा रहता है।
बालतल
और पहलगाम की
कमजोर
पारिस्थितिकी
में यात्रियों
की निरंतर
संख्या
बढ़ने के कारण
बहुत अधिक
कूड़े की समस्या
विकराल होती
जा रही है। पारिस्थितिक
रूप से
संवेदनशील इन
दो स्थानों
में हर वर्ष
प्रदूषण
बढ़ता रहता
है। इस प्रदूषण
को रोकने के
लिए कोई
रोकथाम और
बचाव नहीं है।
प्रसिद्ध
लीडर नदी भी
यात्रा से
होने वाली प्रदूषण
की शिकार है। 2006
में जम्मू और
कश्मीर
प्रदूषण
नियंत्रण
बोर्ड द्वारा
एक 37 पृष्ठ की
रिपोर्ट जारी
की गई थी
जिसमें इस
समस्या का
उल्लेख किया
गया है। इस
रिपोर्ट में
चिंता व्यक्त
की गई है कि
अमरनाथ यात्रा
को पर्यावरण
की दृष्टि से
नियमित नहीं किया
जाता।
इस
रिपोर्ट में
यात्रा के
मुख्य आधार
कैंप पहलगाम
की स्थिति को
विशेष रूप से
चिंताजनक
बताया गया था
और पहलगाम
घाटी के संवेदनशील
पारिस्थितिक
तंत्र को
सुरक्षित रखने
के लिए तत्काल
उपायों के लिए
कहा गया था।
हालांकि,
यह तथ्य
जगजाहिर है कि
प्रदूषण के
विशाल ढेर के
कारण पवित्र
गुफा और उसके
आस-पास की
पारिस्थितिकी
को अपूर्णनीय
क्षति होती
है। पहलगाम और
बालतल के रास्तों
द्वारा
यात्रा की
वार्षिक
क्षमता का आंकलन
करने के लिएय
युक्तिपूर्ण
वैज्ञानिक
सर्वेक्षण
संचालित करने
की आवश्यकता
है जिसमें
अमरनाथ
यात्रा के लिए
यात्रियों की
संख्या के
प्रति विश्वसनीय
और वैज्ञानिक
सूचक शामिल
हों। इसलिए इस
पवित्र गुफा
के आसपास की
कमजोर
पारिस्थितिकी
को अपूर्णनीय क्षति
पहुंचने से
रोकने के लिए
नीति-निर्णयों
में तत्काल
उपायों और समय
से इस स्थिति
को रोकने की
इच्छा जरूरी
है।